मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए…

यह लेख डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों पर आधारित है। वे ऐसे धर्म में विश्वास करते थे जो मनुष्य को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का मार्ग दिखाता हो। धर्म का उद्देश्य किसी को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि सभी को सम्मान और न्याय देना होना चाहिए। यह लेख धर्म की सही समझ और अंबेडकर जी की शिक्षाओं को सामने लाता है, जो हमें सामाजिक न्याय और एकता के लिए प्रेरित करती हैं।

धर्म में विश्वास और अपनाना

मैं ऐसे धर्म में विश्वास करता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता हो। यह केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक संकल्प है- मानवता की सेवा में धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझना और अपनाना। धर्म को अक्सर परंपरा, रीति-रिवाज और पूजा पद्धति तक सीमित कर दिया गया है, लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने धर्म को एक व्यापक सामाजिक अवधारणा के रूप में देखा। उनके लिए धर्म का मतलब केवल आध्यात्मिक उन्नति ही नहीं, बल्कि सामाजिक मुक्ति और न्याय भी था।

धर्म का अर्थ – परंपरा नहीं, बल्कि परिवर्तन

धर्म की मूल भावना आत्मा की शुद्धि, आचरण की शुद्धता और समाज के प्रति कर्तव्यों की पूर्ति में निहित है। जब धर्म व्यक्ति को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना सिखाता है, जब वह किसी भी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार करता है, तब वह धर्म कहलाने योग्य होता है। अंबेडकर जी ने एक बार कहा था – “धर्म वह है जो भय नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान सिखाता है।” उन्होंने उस धर्म का विरोध किया जो जाति व्यवस्था को पोषित करता है, महिलाओं और दलितों को दोयम दर्जे का बनाता है। उनका मानना था कि सच्चा धर्म वह है जो हर व्यक्ति को समान अधिकार देता है।

प्रेरणा: डॉ. भीमराव अंबेडकर (संविधान, धर्म और एकता)

धर्म

डॉ. भीमराव अंबेडकर एक महान नेता, समाज सुधारक और भारत के संविधान के निर्माता थे। उन्होंने हमेशा समाज में समानता, शिक्षा और मानवता की बात की। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों को पाने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने हमें सिखाया कि हम कड़ी मेहनत, शिक्षा और आत्मसम्मान के माध्यम से अपने जीवन को बदल सकते हैं।

डॉ. अंबेडकर के विचार और कार्य आज भी हमें सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें कभी भी अन्याय के आगे नहीं झुकना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।

स्वतंत्रता- आत्मसम्मान का आधार

यदि धर्म को गुलामी और भय का पर्याय बना दिया जाए तो वह धर्म नहीं अधर्म बन जाता है। डॉ. अंबेडकर ने बार-बार कहा कि यदि धर्म किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता छीनता है तो उसे त्याग देना चाहिए। सच्चा धर्म वह है जो व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से सोचने, समझने और अपना जीवन जीने का अधिकार देता है। धर्म हमें सिखाए कि हम अपने आत्मसम्मान से समझौता न करें, अपने अधिकारों के लिए खड़े हों।

समानता- मानवता का मूल

जाति, रंग, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव मानवता के विरुद्ध है। धर्म का मूल कार्य सभी को समान दृष्टि से देखना, सभी को समान अधिकार देना है। लेकिन यदि धर्म ही विभाजन और भेदभाव का कारण बन जाए तो यह समाज के लिए घातक है। अंबेडकर जी का मानना था कि धर्म को सामाजिक समरसता का वाहक होना चाहिए, विभाजन का कारण नहीं।

भाईचारा- समाज को जोड़ने की शक्ति

भाईचारा वह सेतु है जो समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ता है। यह सिर्फ भावना नहीं है, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है। जब धर्म लोगों को जोड़ने का काम करता है, तो समाज में शांति, प्रेम और विकास की नींव रखी जाती है। अंबेडकर जी ने कहा था – “हमारा संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक भी है।” इस संघर्ष की नींव भाईचारे पर आधारित थी।

सामाजिक संदेश – धर्म के प्रति जागरूक होना होगा

आज समाज में धार्मिक कट्टरता, असहिष्णुता और अंधविश्वास तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सबके बीच हमें एक ऐसे धर्म की जरूरत है जो वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे, जो संवैधानिक मूल्यों का पालन करे और जो सामाजिक न्याय को अपना मुख्य उद्देश्य माने। हमारा समाज तभी उन्नति करेगा जब धर्म से भय दूर होगा और उसमें प्रेम, तर्क और करुणा भरी जाएगी। हमें धर्म को किताबों से निकालकर आचरण में लाना होगा, मंदिरों और मस्जिदों से निकालकर सामाजिक समरसता में बदलना होगा।

युवाओं के लिए संदेश – धर्म को आधुनिक नजरिए से देखें

आज का युवा अगर धर्म को सिर्फ पूजा-पाठ, जाति-पाति या दिखावे तक सीमित मानता है तो वह इसकी असली ताकत और गहराई को नहीं समझ पाता। धर्म सिर्फ मंदिर-मस्जिद जाना नहीं है, बल्कि यह हमें सही सोच, अच्छा व्यवहार और दूसरों के साथ इंसानियत से पेश आना सिखाता है।

युवाओं को धर्म को अंधविश्वास की नजर से नहीं बल्कि तर्क, संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी की नजर से देखना चाहिए। अंधानुकरण की बजाय यह सोचना जरूरी है कि धर्म समाज को क्या दे सकता है और हमें इससे क्या सीखना चाहिए। तभी धर्म का असली स्वरूप सामने आएगा और समाज में वास्तविक बदलाव आएगा।

आज के युग में धर्म के नाम पर अत्याचार, नुकसान और फायदा उठाना

आज के दौर में बहुत से लोग धर्म का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। प्रेम, शांति और भाईचारे का मार्ग दिखाने वाले धर्म का इस्तेमाल कुछ लोग नफरत, भेदभाव और हिंसा फैलाने के लिए कर रहे हैं। आम लोगों की आस्था का फायदा उठाकर उन्हें गुमराह किया जा रहा है।

धर्म के नाम पर जातिवाद, भेदभाव और झगड़े बढ़ाए जा रहे हैं। इससे समाज में तनाव और असमानता फैलती है। वहीं कुछ लोग धर्म के नाम पर पैसा और ताकत कमाने में लगे हुए हैं। धर्म का असली उद्देश्य आध्यात्मिक शुद्धता, नैतिकता और सभी के लिए समान व्यवहार है, लेकिन आज बहुत से लोग उसी धर्म को विकृत तरीके से पेश कर रहे हैं। हमें सोच-समझकर धर्म की सही शिक्षाओं को अपनाना चाहिए और उत्पीड़न या दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

धर्म के प्रति मेरा सन्देश (लेखक)

“मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ, जो किसी एक वर्ग या जाति का न होकर पूरी मानवता का हो। जो नफरत नहीं, प्रेम सिखाए। जो डर नहीं, आत्मविश्वास दे। जो ऊंच-नीच नहीं, समानता लाए। यही वो धर्म है जिसकी आज समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि आज और आगे चलकर धर्म के प्रति समानता रखूंगा और  और हर किसी के लिए न्याय के प्रति साथ दूंगा।”

डॉ. भीमराव के जीवन पर आप क्या कहना चाहेंगे? कृपया धर्म पके प्रति हो जुल्म को देखते हुए अपने धर्म के बारे में अपने विचार जरूर साझा करें…….
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