और एक हमारे देश के प्रधानमंत्री? जानिए क्या है सच?

हाल ही में 3 मई 2024 को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम में भीषण आतंकी हमला हुआ। इस हमले में महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों समेत कई निर्दोष तीर्थयात्रियों की मौत हो गई। हर बार की तरह इस बार भी वही नजारा देखने को मिला – नेताओं के भाषण, विरोध प्रदर्शन, सोशल मीडिया पर हैशटैग और टीवी पर शोर। लेकिन देश की जनता अब यही सवाल पूछ रही है – क्या अब सिर्फ “कड़ी निंदा” और “जांच” से ही काम चल जाएगा? या फिर हमारे देश के प्रधानमंत्री को भी अब Action मोड में आना चाहिए?

जब दूसरे देशों पर हमला होता है तब सीधा Action

हमारे देश के प्रधानमंत्री

दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिन्होंने अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए सख्त और स्पष्ट कार्रवाई की है। उनके नेता सिर्फ भाषण नहीं देते, वे कार्रवाई करते हैं।

• अमेरिका – 9/11 के बाद निर्णायक कदम

11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुआ आतंकी हमला इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जाता है। इस हमले के बाद अमेरिका ने तुरंत अफगानिस्तान में आतंकियों के खिलाफ जंग शुरू कर दी। पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मार गिराया। अमेरिका ने दुनिया की परवाह नहीं की – उसने अपने लोगों को संदेश दिया कि अगर तुम हम पर हमला करोगे, तो हम जवाब देंगे।

• इजराइल – हर हमले का तुरंत जवाब

इजराइल एक ऐसा देश है जो हर हमले का तुरंत जवाब देता है। अगर एक भी रॉकेट उसकी तरफ आता है, तो जवाब में दर्जनों मिसाइलें भेजी जाती हैं। वहां नेताओं के भाषण काम नहीं आते, कार्रवाई की राजनीति होती है। जनता जानती है कि सरकार उनकी सुरक्षा के लिए हर परिस्थिति में उनके साथ है।

• रूस – टैंकों से जवाब

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नीति बहुत स्पष्ट है – अगर कोई रूस पर हमला करता है, तो वह सीधे जवाब में सेना भेज देता है। यूक्रेन की स्थिति इसका एक उदाहरण है। रूस ने अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद अपने नागरिकों और हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए।

• उत्तर कोरिया – उकसावे पर मिसाइल परीक्षण

उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन की राजनीति भले ही सख्त मानी जाती हो, लेकिन उनकी नीतियों में उनके देश की सुरक्षा के प्रति उनके सख्त रुख को दर्शाया गया है। अगर कोई छोटा-मोटा उकसावा भी होता है, तो वह मिसाइलों का परीक्षण कर देते हैं, ताकि दुनिया को यह संदेश मिले कि वह कमजोर नहीं हैं।

जब भारत पर हमला होता है, तब भाषण, मोमबत्तियाँ और मीडिया में बहस

हमारे देश के प्रधानमंत्री

जब भारत में कोई बड़ा आतंकवादी हमला होता है – चाहे वह कश्मीर में तीर्थयात्रियों पर हमला हो या सीमा पर हमारे सैनिकों की शहादत – एक तरह की “तयशुदा स्क्रिप्ट” का पालन किया जाता है। हर बार वही दृश्य, वही बयान, वही प्रतिक्रियाएँ दोहराई जाती हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह सब काफी है? नेताओं के भाषण, विरोध प्रदर्शन, सोशल मीडिया पर हैशटैग और टीवी पर शोर। लेकिन देश की जनता अब यही सवाल पूछ रही है – क्या अब सिर्फ “निंदा करना” और “जांच पड़ताल” से ही काम चल जाएगा? या फिर भारत को अब Action मोड में आना चाहिए?

• नेताओं के भाषण और “कड़ी निंदा”

हमलों के तुरंत बाद प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय नेता तक मीडिया में आकर बयान देने लगते हैं। कहा जाता है:

“हम चुप नहीं बैठेंगे।”

“दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”

“यह कायराना हरकत है।”

लेकिन ऐसे बयान सालों से आते रहे हैं। जनता को अब लगने लगा है कि यह सब “री-रिकॉर्डिंग” की तरह है – जो हर बार हमले के बाद चलाया जाता है। असली कार्रवाई दिखाई नहीं देती।

• टीवी पर बहस और शोर

हमले के अगले ही दिन न्यूज़ चैनलों पर बहस शुरू हो जाती है। पैनल में नेता, पूर्व अधिकारी, पत्रकार और कई बार सेलिब्रिटी भी बैठते हैं। वे जोर-जोर से चिल्लाते हैं और एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं। राजनीति मुद्दे पर हावी हो जाती है। बहस होती है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकलता।

• सोशल मीडिया पर #JusticeFor ट्रेंड

ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर #JusticeForVictims, #WeStandWithIndia, #StopTerror जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगते हैं। लोग गुस्से में पोस्ट करते हैं, स्टोरी डालते हैं, लेकिन यह गुस्सा कुछ ही दिनों में खत्म हो जाता है। सरकार पर कोई वास्तविक दबाव नहीं पड़ता क्योंकि यह डिजिटल गुस्सा है, जमीनी कार्रवाई नहीं।

• विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी के बीच राजनीतिक लड़ाई

हर हमले के बाद सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगाना शुरू कर देते हैं। विपक्ष कहता है कि सरकार विफल रही है। सरकार कहती है कि विपक्ष राजनीति कर रहा है। लेकिन इस लड़ाई में असली मुद्दा – यानी नागरिकों की सुरक्षा – पीछे छूट जाता है।

• “जांच होगी” जैसे वादे

“घटना की जांच होगी”, “एनआईए की टीम पहुंच गई है”, “रिपोर्ट मांगी गई है” जैसे वादे भी आम हो गए हैं। कई बार इन जांचों की रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की जाती। अगर अपराधी पकड़े भी जाते हैं, तो उन्हें जल्दी सजा नहीं मिलती। जनता को न तो न्याय दिखता है और न ही निर्णायक कार्रवाई।

• मोमबत्तियाँ और फूल चढ़ाना

देश भर में मोमबत्ती मार्च निकाले जाते हैं, मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं, फूल चढ़ाए जाते हैं। यह भावनात्मक सहानुभूति का संकेत है, लेकिन आतंकवाद जैसा गंभीर मुद्दा केवल भावनाओं से हल नहीं होगा। असली जरूरत सख्त और स्पष्ट कार्रवाई की है।

• प्रधानमंत्री और नेताओं के बार-बार बयान

“हम चुप नहीं बैठेंगे”, “दोषियों को सजा मिलेगी”, “हमारी सेना जवाब देगी” – ये बयान जनता ने पहले भी सौ बार सुने हैं।

लेकिन अब लोग पूछ रहे हैं:

“हमें जवाब कब मिलेगा?”

“कोई ठोस कार्रवाई कब होगी?”

क्या सिर्फ़ पानी, व्यापार या फ़िल्में बंद करने से समस्या हल हो जाएगी?

जब भी भारत में कोई आतंकवादी हमला होता है और उसके पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों का हाथ पाया जाता है, तो भारत सरकार कुछ “कूटनीतिक” और “प्रतीकात्मक” कदम उठाती है। ये कदम दिखावे के लिए भले ही कठिन लगें, लेकिन क्या इनसे कोई वास्तविक अंतर पड़ता है?

1. पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद करना

इससे पता चलता है कि हम नाराज़ हैं, लेकिन सच यह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार बहुत सीमित है. इसलिए इसे रोकने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ता.

2. रेल और बस सेवाएं बंद करना

इससे आम नागरिक प्रभावित होते हैं, खासकर सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले. लेकिन इससे न तो आतंकवादियों पर असर पड़ता है और न ही उनका समर्थन करने वालों पर.

3. क्रिकेट और खेल संबंधों को तोड़ना

इससे सिर्फ़ एक राजनीतिक और भावनात्मक संदेश जाता है कि हम अब संबंध नहीं रखना चाहते. लेकिन इससे आतंकवादियों की गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ता.

4. फिल्मों से पाकिस्तानी कलाकारों को हटाना

यह एक प्रतीकात्मक कदम है, जिससे जनता का गुस्सा शांत होता है. लेकिन इससे आतंकवाद की जड़ें नहीं हिलतीं.

5. सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार

भारत ने कई बार कहा है कि वह सिंधु जल संधि की समीक्षा करेगा, लेकिन यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, और इसे तोड़ना आसान नहीं है. हर बार सिर्फ़ चेतावनी दी जाती है, कोई कार्रवाई नहीं की जाती.

6. “सख्त चेतावनी” देना

हर हमले के बाद हम यही सुनते हैं- “कड़ा जवाब दिया जाएगा”, “किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा”. लेकिन कई बार ये बातें सिर्फ़ भाषणों तक ही सीमित रह जाती हैं.

क्या ये उपाय काफी हैं? नहीं.

इन कदमों से पाकिस्तान या आतंकी संगठनों को कोई खास नुकसान नहीं होता. उन्हें पता है कि भारत सिर्फ़ नाराज़गी दिखाएगा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं करेगा. यही वजह है कि हमले बार-बार होते रहते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी जी सरकार के शासनकाल में हुए प्रमुख आतंकी हमले और नुकसान 

हमारे देश के प्रधानमंत्री

> उधमपुर हमला (5 अगस्त 2015), स्थान: जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले में बीएसएफ की बस पर हमला। नुकसान: 2 बीएसएफ जवान शहीद, कई घायल। एक आतंकी जिंदा पकड़ा गया (नवीद)।

> पठानकोट हमला (2 जनवरी 2016), स्थान: पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन, पंजाब। नुकसान: 7 सुरक्षाकर्मी शहीद, 20 से ज्यादा घायल। हमला कई दिनों तक चला, जिससे सुरक्षा तैयारियों पर सवाल उठ रहे हैं।

> उरी हमला (18 सितंबर 2016), स्थान: जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में सेना के ब्रिगेड मुख्यालय पर हमला। नुकसान: 19 जवान शहीद, जवाब में भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की। इसे उस समय का सबसे बड़ा हमला माना गया।

> अमृतसर ग्रेनेड हमला (18 नवंबर 2018), स्थान: निरंकारी भवन, अमृतसर। नुकसान: 3 नागरिक मारे गए, 20 से ज़्यादा घायल हुए

> पुलवामा आत्मघाती हमला (14 फ़रवरी 2019), स्थान: जम्मू-श्रीनगर हाईवे, पुलवामा पर सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर आत्मघाती हमला। नुकसान: 40 सीआरपीएफ़ जवान शहीद, पूरे देश में शोक और गुस्से का माहौल। मोदी सरकार के शासनकाल में यह सबसे बड़ा आतंकी हमला था।

> नगरोटा हमला (नवंबर 2020), स्थान: जम्मू के पास नगरोटा में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़। नुकसान: मुठभेड़ कई घंटों तक चली, जिसमें चार आतंकी मारे गए। हमले का उद्देश्य एक बड़ा हमला करना था, लेकिन समय रहते इसे रोक दिया गया।

और भी कई छोटे-मोटे हमले हुए थे जिनमे कई नुकसान हुआ है। लेकिन इतना बड़ा कोई एक्शन नहीं लिया गया जिससे आगे सुधार आ सका।

जाने प्रधानमंत्री मोदी जी के शासनकाल में हुए सारे हमले, कारण, नुकसान और जिम्मेदार..

कुल मिलाकर, इन हमलों में दर्जनों सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और सैकड़ों घायल हुए। आर्थिक नुकसान के साथ-साथ सैनिकों के मनोबल और आम जनता की सुरक्षा की भावना पर भी गहरा असर पड़ा। बार-बार हुए हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया, और सरकार की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए।

क्यों याद करते हैं भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री – इंदिरा गांधी को?

हमारे देश के प्रधानमंत्री

इंदिरा गांधी को एक साहसी और कठोर निर्णय लेने वाली नेता के रूप में याद किया जाता है, जिनके शासनकाल में भारत ने कई ऐतिहासिक मोड़ देखे। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में उन्होंने तुरंत सैन्य कार्रवाई का आदेश दिया, जिसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ। 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके और राजाओं की पेंशन (प्रिवी पर्स) को समाप्त करके उन्होंने आर्थिक और सामाजिक सुधारों की दिशा में मजबूत कदम उठाए। उनका नारा “गरीबी हटाओ” जनता से सीधे जुड़ने की रणनीति थी, जिसने उन्हें एक जननेता बना दिया।

उनकी शासन शैली कई बार विवादास्पद होने के बावजूद, उन्होंने 1975 में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया, जिससे उन्हें ‘आयरन लेडी’ का नाम मिला। 1984 में स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाना भी ऐसा ही एक कठोर निर्णय था, जो देश की अखंडता के लिए लिया गया था लेकिन इसके गंभीर राजनीतिक और सामाजिक परिणाम हुए। इन सभी फैसलों ने इंदिरा गांधी को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी पीछे नहीं हटती थीं।

क्या अपने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी Action मोड में आना चाहिए।

हमारे देश के प्रधानमंत्री

एक प्रधानमंत्री का सबसे बड़ा धर्म है — राष्ट्र की रक्षा और जनता का विश्वास कायम रखना। ऐसे में नरेंद्र मोदी जी को एक्शन मोड में आना ही चाहिए, और वह भी सिर्फ भाषण या सोशल मीडिया पोस्ट से नहीं, जमीन पर दिखने वाले ठोस फैसलों से।

प्रधानमंत्री का काम सिर्फ़ माइक पर बोलना या सोशल मीडिया पर पोस्ट करना नहीं है, बल्कि ऐसे समय में सख्त और प्रभावी कदम उठाकर लोगों का भरोसा मज़बूत करना है। मोदी जी को हमेशा से एक ऐसे नेता के रूप में देखा गया है जो बड़े फ़ैसले लेने से पीछे नहीं हटते – इसलिए संकट के इस समय में भी देश उनसे यही उम्मीद करता है कि वो तेज़ी से कार्रवाई करें, मज़बूत फ़ैसले लें और ज़मीन पर बदलाव लाएँ।

✓ देश का डर होना चाहिए: जिस तरह दुश्मन दूसरे देशों से डरते हैं, उसी तरह उन्हें भारत से भी डर लगना चाहिए ताकि कोई भी गलत कदम उठाने से पहले एक बार नहीं, सौ बार सोचें।

✓ सीधा जवाब देना: जो भी हमला करे, उसे सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक के ज़रिए मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए।

✓ दबाव होना चाहिए: चरमपंथियों का समर्थन करने वाले देशों को दुनिया के सामने बेनकाब किया जाना चाहिए।

✓ सुरक्षा को मज़बूत करना: सीमा और सुरक्षा व्यवस्था को तेज़ और तकनीकी रूप से और मज़बूत बनाना ज़रूरी है, क्योंकि सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आतंकवादी अंदर कैसे घुसे?

✓ नीति तय होनी चाहिए: अगर कहीं कोई विफलता है, तो उसके लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ अगली कार्रवाई होनी चाहिए।

✓ ऑफ़लाइन आतंक पर रोक: सोशल मीडिया और इंटरनेट पर विफल हो रही आतंकवादी सोच पर लगाम लगाई जानी चाहिए।

✓ परफेक्ट और तेज डिजिटल सुरक्षा साइबर टीम का होना: जो हर वक्त तैयार हो, तेज़ी से काम करे, साइबर अटैक, हैकिंग, फेक न्यूज़ और डिजिटल जासूसी जैसे खतरों से देश को बचाए।

✓ लोगों का भरोसा बनाए रखना: भाषणों से नहीं, काम से दिखाना होगा कि सरकार कार्रवाई कर रही है।

✓ त्वरित और कठोर सज़ा: जो भी आतंक फैलाता है, उसे त्वरित और कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।

प्रधानमंत्री का काम सिर्फ़ माइक पर बोलना या सोशल मीडिया पर पोस्ट करना नहीं है, बल्कि ऐसे समय में सख्त और प्रभावी कदम उठाकर लोगों का भरोसा मज़बूत करना है। मोदी जी को हमेशा से एक ऐसे नेता के रूप में देखा गया है जो बड़े फ़ैसले लेने से पीछे नहीं हटते – इसलिए संकट के इस समय में भी देश उनसे यही उम्मीद करता है कि वो तेज़ी से कार्रवाई करें, मज़बूत फ़ैसले लें और ज़मीन पर बदलाव लाएँ।


पिछले और हाल ही में हुए आपके हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को क्या करना चाहिए? 

📢 आतंकियों और साथ देने वालों को घुसकर मरना चाहिए।

📢 जो भारत के खिलाफ बोलेगा, उसे मिटा दिया जाएगा।

📢 POK को वापस लेना चाहिए।

📢 सेना को खुली छूट मिलनी चाहिए और जो सीमा पार करें उसे तुरंत मिटा देना चाहिए।

📢 युद्ध का ऐलान करना चाहिए और सब का बदला चाहिए?

📢 अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।


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