किन्नर समुदाय: शव यात्रा रात में क्यों, क्यों नहीं देखना चाहिए आम इंसान को। जानें संपूर्ण रहस्य

यह लेख केवल ज्ञान और समझ के उद्देश्य से लिखा गया है। हमारा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं या समुदाय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाना नहीं है। किन्नर समुदाय का समाज में एक विशेष स्थान है और उनके रीति-रिवाज, परंपराएँ और जीवनशैली हमारे लिए जिज्ञासा का विषय हो सकती है। इसलिए, इस लेख में हम उनसे जुड़े रहस्यों को सम्मानपूर्वक प्रस्तुत कर रहे हैं।

किन्नर कौन/क्या होते हैं?

किन्नर भारतीय समाज में एक ट्रांसजेंडर समुदाय है जो स्त्री और पुरुष दोनों के गुणों से अलग है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में इनके पास विशेष शक्तियाँ बताई गई हैं। ये समाज में जन्म, विवाह जैसे विशेष अवसरों पर आशीर्वाद देने आते हैं। किन्नरों की अपनी अलग जीवनशैली और नियम होते हैं, जिनका वे सख्ती से पालन करते हैं।

किन्नरों की शव यात्रा रात में ही क्यों निकाली जाती है?

ऐसा माना जाता है कि किन्नरों की शव यात्रा रात में इसलिए निकाली जाती है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके और किसी की नज़र न लगे। धार्मिक मान्यता यह भी कहती है कि किन्नरों में आध्यात्मिक शक्तियाँ होती हैं, इसलिए उनकी अंतिम यात्रा गोपनीय रखी जाती है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी निभाई जाती है।

किन्नरों की शवयात्रा कैसे निकाली जाती है?

किन्नरों की शवयात्रा आमतौर पर रात में बहुत ही गुप्त तरीके से निकाली जाती है। शव को ढोल-नगाड़ों के साथ ले जाया जाता है और इस दौरान केवल किन्नर समुदाय के लोग ही मौजूद होते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे जोर-जोर से नाचते-गाते हैं ताकि आत्मा को मुक्ति मिल सके और कोई भी नकारात्मक ऊर्जा उसके आस-पास न आए।

किन्नर की लाश देखने का क्या मतलब है?

धार्मिक मान्यता के अनुसार किन्नर की शव यात्रा या लाश देखना आम व्यक्ति के लिए अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इससे दुर्भाग्य जीवन में प्रवेश कर सकता है। इसलिए इसे गोपनीय रखा जाता है। मान्यता है कि यदि कोई आम व्यक्ति अंतिम संस्कार देख ले, तो मरने वाले का अगला जन्म फिर किन्नर रूप में होता है। इसलिए इसे आम लोगों की नज़रों से बचाया जाता है।

किन्नरों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है?

किन्नरों का अंतिम संस्कार आमतौर पर विशेष परंपराओं के तहत किया जाता है। कभी उन्हें दफनाया जाता है, तो कभी उन्हें जलाया भी जाता है। इस दौरान विशेष मंत्रोच्चार और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इनका अंतिम संस्कार किन्नर समुदाय के लोगों द्वारा ही किया जाता है और इसमें किसी बाहरी व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाता।

मरने के बाद किन्नर क्या करते हैं?

ऐसा माना जाता है कि मरने के बाद किन्नरों की आत्मा मुक्त हो जाती है और एक दिव्य शक्ति में बदल जाती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, वे फिर से किन्नर के रूप में जन्म लेते हैं ताकि वे अपनी अधूरी सेवा को पूरा कर सकें। कई बार उनके पूर्वजों की पूजा भी की जाती है ताकि उनका आशीर्वाद बना रहे।

क्या किन्नर का श्राप और आशीर्वाद लगता है?

जी हाँ, किन्नरों का आशीर्वाद और श्राप दोनों प्रभावशाली माने जाते हैं। यह मान्यता है कि यदि वे खुश होकर आशीर्वाद दें तो जीवन में समृद्धि आती है, वहीं नाराज होकर दिए गए श्राप से दुर्भाग्य का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए लोग उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।

किन्नर के पैर छूने से क्या होता है?

कुछ लोगों का मानना है कि ट्रांसजेंडर के पैर छूने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और दुनिया खुल जाती है। हालांकि, हर ट्रांसजेंडर इस बात से सहमत नहीं है क्योंकि उनका भी अपना स्वाभिमान और गरिमा होती है। अगर वे खुद आशीर्वाद देते हैं तो यह अधिक प्रभावी माना जाता है।

किन्नर किस भगवान की पूजा करते हैं?

किन्नर समुदाय

किन्नर समुदाय मुख्यतः भगवान अरावन की पूजा करता है, जो महाभारत से जुड़े हैं। इसके अलावा वे भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप को भी पूजते हैं। कुछ स्थानों पर वे बहादुर योद्धाओं और पूर्वजों की भी पूजा करते हैं। उनकी धार्मिकता उनकी परंपराओं में गहराई से जुड़ी होती है।

किन्नर किसको अपना पति मानते हैं?

किन्नर समुदाय भगवान अरावन को अपना पति मानते है। महाभारत की कथा के अनुसार युद्ध से पहले अरावन ने बलि से पहले विवाह करने की इच्छा जताई थी। किसी भी महिला ने उनसे विवाह करने के लिए नहीं कहा, किन्नरों ने विवाह कर लिया। अरावन की बलि के बाद वे विधवा हो गईं और तब से उन्हें उनका पति माना जाने लगा।

किन्नर समाज का धर्म क्या है?

किन्नर समुदाय का कोई विशेष धर्म नहीं है, लेकिन ज़्यादातर किन्नर हिंदू धर्म का पालन करते हैं। वे बहुचरा माता, अरावन, शिव और काली जैसे देवताओं की पूजा करते हैं। कुछ किन्नर इस्लाम, ईसाई या अन्य धर्मों से भी हो सकते हैं, यह उनके परिवार और सामाजिक परिवेश पर निर्भर करता है।

किन्नर और हिजड़ा में क्या अंतर है?

हालाँकि आमतौर पर दोनों को एक ही समझा जाता है, परंतु ‘हिजड़ा’ शब्द अक्सर अपमानजनक अर्थों में इस्तेमाल होता है, जबकि ‘किन्नर’ सम्मानजनक और आध्यात्मिक भाव लिए होता है। किन्नर समाज में अनुशासन, धर्म और परंपरा का पालन अधिक होता है। वहीं हिजड़ा शब्द का प्रयोग अब कानूनी और सामाजिक रूप से कम हो रहा है।

किन्नर समुदाय, समाज के प्रति कैसा व्यवहार करता है?

किन्नर समुदाय आम तौर पर शांतिप्रिय होता है और अपनी सीमाओं में ही रहता है। वे समाज में तभी शामिल होते हैं जब कोई शुभ काम होता है या कोई परंपरा निभानी होती है। जब उनका सम्मान किया जाता है तो वे आशीर्वाद देने में खुश होते हैं, लेकिन जब उनकी उपेक्षा या अपमान किया जाता है, तो वे दूर रहना पसंद करते हैं।

समाज को किन्नर के प्रति कैसा व्यवहार रखना चाहिए?

समाज को किन्नर समुदाय के प्रति सम्मानजनक और संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए। उन्हें भी शिक्षा, रोजगार और सामाजिक अधिकार मिलने चाहिए। ट्रांसजेंडरों को समझकर और स्वीकार करके समाज अधिक सामंजस्यपूर्ण और मानवीय बन सकता है। हमें उन्हें समान दर्जा देकर मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

किन्नर समाज के लिए कानून और अधिकार?

किन्नर समुदाय के लिए बनाए गए कानून और अधिकार • 2014 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला: ट्रांसजेंडर को “तीसरे लिंग” के रूप में कानूनी मान्यता दी गई। • समानता का अधिकार: शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी योजनाओं में समान अधिकार। • 2019 का ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम: पहचान प्रमाण पत्र का अधिकार। • स्व-पहचान के आधार पर लिंग चुनने की स्वतंत्रता। • भेदभाव से सुरक्षा (नौकरी, शिक्षा, उपचार आदि में)। • पुनर्वास, सामाजिक समावेश और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ। • राज्य सरकार की योजनाएँ: कुछ राज्यों में पेंशन, छात्रवृत्ति, मुफ्त उपचार और आश्रय योजनाएँ लागू की गई हैं। • कानूनी सुरक्षा: किसी भी तरह की हिंसा, शोषण या जबरदस्ती के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार। ये प्रावधान ट्रांसजेंडर समुदाय को सम्मानजनक और समान जीवन जीने के लिए सशक्त बनाते हैं।

किन्नर समाज – परंपरा / अधिकार

किन्नर समुदाय की परंपराएं और मान्यताएं हमारे समाज का अहम हिस्सा हैं, जिन्हें समझना और उनका सम्मान करना ज़रूरी है। रात में उनकी शवयात्रा निकालने की परंपरा धार्मिक मान्यताओं और शांति की भावना से जुड़ी हुई है। समाज के समग्र विकास के लिए ट्रांसजेंडरों के साथ समानता और सम्मान का व्यवहार ज़रूरी है। समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए उनके आशीर्वाद और अभिशाप को समझना भी ज़रूरी है। हमें ट्रांसजेंडरों के प्रति सम्मान और समझ विकसित करनी चाहिए और उनकी परंपराओं को सही संदर्भ में देखना चाहिए।

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