आदिवासी भारत के मूल आदिवासी समुदाय हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे यहाँ सबसे पहले बसने वाले थे। “आदि” का अर्थ है “प्रारंभिक” या “मूल” और “वासी” का अर्थ है “निवासी”, इसलिए “आदिवासी” का अर्थ है “मूल निवासी”। ये जनजातियाँ भारत के विभिन्न भागों में फैली हुई हैं और अपनी विशिष्ट भाषाओं, परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती हैं। आदिवासी समुदाय अक्सर प्रकृति के करीब रहते हैं और उनकी आजीविका कृषि, वन उत्पादों और पारंपरिक व्यवसायों पर निर्भर करती है।
भारत में पहले आदिवासी आए थे या आर्यों का आगमन हुआ था?
भारत में आदिवासियों और आर्यों के आगमन को लेकर ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से कई मतभेद और शोध हुए हैं। परंपरागत रूप से आदिवासियों को भारत का मूल निवासी माना जाता है, जबकि आर्यों का आगमन बाद की घटना मानी जाती है। आइए इसे क्रम से समझते हैं:
आदिवासी समाज
आदिवासी, जिन्हें “भारत का मूल निवासी” माना जाता है, प्राचीन काल में, संभवतः हजारों साल पहले भारत आए थे। यह समुदाय प्रारंभिक मानव सभ्यता के समय से ही भारतीय उपमहाद्वीप में रह रहा है। आदिवासी सिंधु घाटी सभ्यता जैसे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से भी जुड़े हैं, जिसे आर्यों के आगमन से पहले की सभ्यता माना जाता है। यह सभ्यता लगभग 3300 से 1300 ईसा पूर्व तक फली-फूली।
आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से कृषि, शिकार और वन संसाधनों पर आधारित जीवन जीते थे और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व में विश्वास करते थे। उनकी अपनी भाषाएँ, धर्म और सामाजिक व्यवस्थाएँ थीं, जो आर्य संस्कृति से अलग थीं।
आर्यन समाज
माना जाता है कि आर्यन लगभग 1500 ईसा पूर्व भारत में आए थे। आर्यन के आगमन से पहले भारत में हड़प्पा सभ्यता मौजूद थी। आर्यन मुख्य रूप से खानाबदोश पशुपालक थे जो मध्य एशिया से भारत आए थे। उनके आगमन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में वैदिक संस्कृति का विकास हुआ। आर्यन संस्कृति और धर्म ने बाद में हिंदू धर्म के विकास की नींव रखी और उनकी भाषा संस्कृत थी।
सबसे पहले कौन आया?
इतिहास और पुरातत्व के अनुसार:
आदिवासी : लोगों को भारत का सबसे प्राचीन निवासी माना जाता है, जिनकी उपस्थिति आर्यन के आगमन से बहुत पहले थी।
आर्यन : बाद में भारत आए, लगभग 1500 ईसा पूर्व और उत्तर भारत में अपनी सभ्यता और संस्कृति का विस्तार किया।
इस प्रकार, आदिवासी लोग आर्यन के आगमन से पहले भारत में बस गए थे और आर्यन उनके बाद भारत आए। आदिवासी और आर्यन दोनों ही भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, लेकिन उनके आगमन और प्रभाव की अवधि अलग-अलग है।
आदिवासी का धर्म क्या है? क्या आदिवासी खुद एक धर्म है?
आदिवासी धर्म और हिंदू धर्म को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से एक ही मानना सही नहीं है, क्योंकि आदिवासी संप्रदाय की धार्मिक मान्यताएँ और प्रथाएँ हिंदू धर्म से काफी भिन्न हैं। हालाँकि भारतीय समाज में इसे अक्सर हिंदू धर्म का हिस्सा माना जाता है, लेकिन यह एक अशुद्ध और जटिल विभाजन है। आइए जानते है विस्तार से।
आदिवासी धर्म
• आदिवासियों की अपनी अलग धार्मिक मान्यताएँ हैं, जो मुख्य रूप से प्रकृति-पूजा, पूर्वज-पूजा और स्थानीय देवताओं की पूजा पर आधारित हैं।
• आदिवासी समुदाय के पास कोई एक धार्मिक ग्रंथ, समन्वयवादी धर्म या मंदिर-पूजा प्रणाली नहीं है, जो हिंदू धर्म की विशेषताएँ हैं।
• आदिवासियों का अपना अलग धर्म और रीति-रिवाज़ हैं, जिसमें वह अलग-अलग प्रकार से रीति रिवाज पूजते हैं। उनका शादी का रीति रिवाज भी अलग ही रीति रिवाज अर्थात उनके रीति रिवाज से किया जाता है।
हिंदू धर्म से संबंध
• भारतीय संविधान के अनुसार, आदिवासी समुदायों को औपचारिक रूप से किसी संगठित धर्म के अंतर्गत नहीं रखा गया है। लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों के कारण कुछ आदिवासी समुदायों ने समय के साथ हिंदू देवी-देवताओं और रीति-रिवाजों को अपना लिया है।
• भारतीय जनगणना में कई आदिवासियों को “हिंदू” के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन उनकी पारंपरिक धार्मिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज हिंदू धर्म से भिन्न हैं।
• कुछ आदिवासी अपने पारंपरिक धर्मों का पालन करते हैं, जबकि कुछ ने हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम आदि को भी अपना लिया है, लेकिन उनकी पारंपरिक मान्यताएं और रीति-रिवाज अक्सर उनमें शामिल रहते हैं।
क्या आदिवासी धर्म का अपना कोई धर्म है?
• आदिवासी धर्म मुख्य रूप से स्वतंत्र और पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित है, जो हिंदू धर्म से अलग है। हालाँकि इसे औपचारिक रूप से “आदिवासी धर्म” के रूप में नहीं पहचाना जाता है, लेकिन कई आदिवासी समुदाय इसे स्वतंत्र धर्म मानते हैं और चाहते हैं कि इसे संविधान और जनगणना में एक अलग धर्म के रूप में मान्यता दी जाए।
• आदिवासी धर्म प्रकृति की पूजा, पूर्वजों की आत्माओं और स्थानीय देवताओं के प्रति सम्मान पर केंद्रित है, जबकि हिंदू धर्म मुख्य रूप से वेदों, पुराणों और भगवान विष्णु, शिव, देवी आदि की पूजा पर आधारित है।
आदिवासी समुदायों की धार्मिक मान्यताएँ हिंदू धर्म से अलग हैं और कई आदिवासी समूह खुद को हिंदू धर्म से अलग मानते हैं। आदिवासी धर्म को स्वतंत्र धर्म माना जा सकता है, क्योंकि यह अपनी अलग प्रकृति और मान्यताओं के साथ भारतीय धार्मिक परंपरा का एक अलग हिस्सा है।
आदिवासी का भगवान कौन है?
आदिवासी समुदायों में ईश्वर की अवधारणा मुख्यधारा के धर्मों से भिन्न हो सकती है। आदिवासी समाज की धार्मिक मान्यताएँ अधिकतर प्रकृति-पूजा पर आधारित होती हैं, तथा वे अपने स्थानीय देवताओं, प्रकृति के तत्वों, पूर्वजों और आत्माओं की पूजा करते हैं। विभिन्न आदिवासी समूहों के अपने-अपने देवता और धार्मिक रीति-रिवाज होते हैं, जो उनकी सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत से जुड़े होते हैं। आदिवासी समाज का कोई विशिष्ट ईश्वर नहीं है, लेकिन वे प्रकृति, स्थानीय देवताओं, पूर्वजों और आत्माओं की पूजा करते हैं। उनकी धार्मिक मान्यताएँ बहुत विविध हैं और उनकी संस्कृति और उनके जीवन के रहन सहन से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
आम तौर पर, आदिवासी समुदायों में निम्नलिखित को भगवान के रूप में पूजा जाता है।
प्रकृति के तत्वों की पूजा : कई आदिवासी समुदायों में सूर्य और चाँद (चन्द्र) की पूजा की जाती है। आदिवासी समुदायों में धरती माता या भूमि देवी की पूजा प्रमुखता से की जाती है, क्योंकि उनका जीवन कृषि और भूमि पर आधारित है। पहाड़, नदियाँ, जंगल और पशु की भी वे पूजा करते हैं। वे प्राकृतिक शक्तियों को देवता मानते हैं और उनकी रक्षा के लिए आदिवासी रीति रिवाज में पूजा करते हैं।
स्थानीय देवता : विभिन्न आदिवासी समुदायों के अपने क्षेत्रीय देवता होते हैं। उदाहरण के लिए, सरना धर्म झारखंड के आदिवासी समुदायों की एक प्रमुख धार्मिक मान्यता है, जिसमें वे सिंगबोंगा (सूर्य देवता) की पूजा करते हैं। संथाल आदिवासी थान और मरंग बुरु जैसे देवताओं की पूजा करते हैं। भील और गोंड जनजातियों के अपने देवता हैं, जैसे भील कालिका माता और देव नारायण की पूजा करते हैं।
पूर्वजों की पूजा : आदिवासी समाज में पूर्वजों की आत्माओं की पूजा एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। उनका मानना है कि उनके पूर्वजों की आत्माएं उनकी रक्षा करती हैं और उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
प्रकृति की आत्मा और शक्ति : आदिवासी धार्मिक मान्यताओं में आत्माओं और प्रकृति की शक्ति का विशेष महत्व है। उनका मानना है कि हर चीज़ में आत्मा होती है, चाहे वह पेड़ हो, पत्थर हो या जानवर।
आदिवासी समाज की शिक्षा, उनके सुधार और कौन कौन सी सुविधाएं और योजनाएं प्रदान की गयी के लिए विस्तार से जानने के लिए क्लिक करें।
आदिवासी समुदायों के उपरोक्त शीर्षकों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
1. आदिवासी संस्कृति और परंपराएँ
आदिवासी समुदायों की संस्कृति उनके जीवन के हर पहलू में गहराई से समाहित है। इनमें उनकी धार्मिक मान्यताएँ, त्यौहार, रीति-रिवाज और लोकगीत शामिल हैं। प्रकृति से गहरे जुड़ाव के कारण उनका सांस्कृतिक ताना-बाना अनूठा है।
2. आदिवासी समाज: संरचना और विशेषताएँ
आदिवासी समाजों की सामाजिक संरचना पारंपरिक, परिवार-केंद्रित है, जिसमें कुल और समुदाय की इकाइयाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समाज आपसी सहयोग, सामुदायिक भावना और अपने स्वयं के नियमों और विनियमों द्वारा संचालित होते हैं।
3. आदिवासी कलाएँ और शिल्प
आदिवासी कला चित्रकला, मूर्तिकला, लोक शिल्प और संगीत का एक अनूठा मिश्रण है। उनके शिल्प में प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग प्रमुख है, जो उन्हें उनके पर्यावरण से जोड़े रखता है। पेंटिंग (जैसे वारली और सोहराई) और हस्तशिल्प उनकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के मुख्य माध्यम हैं।
4. भारत में आदिवासियों के अधिकार और संरक्षण
भारतीय संविधान आदिवासियों की सुरक्षा के लिए कई विशेषाधिकार प्रदान करता है, जैसे अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण, भूमि अधिकार और उनकी पारंपरिक जीवन शैली की रक्षा के उपाय। उनके सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कई कानून और योजनाएँ भी बनाई गई हैं।
5. आदिवासी जीवनशैली: पारंपरिक और आधुनिक जीवन के बीच संतुलन
आदिवासी जीवनशैली परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण है। जहाँ एक ओर वे अपनी पुरानी प्रथाओं और रीति-रिवाजों को बनाए रखने की कोशिश करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे शिक्षा, शहरीकरण और तकनीक के कारण आधुनिक जीवनशैली भी अपना रहे हैं।
6. आदिवासी भाषाएँ और उनकी विविधता
भारत में आदिवासी समुदायों द्वारा सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग हैं। इन भाषाओं की अपनी लिपि, व्याकरण और साहित्य है, लेकिन कई आदिवासी भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
7. आदिवासी समुदायों में शिक्षा और विकास
आदिवासी समुदायों में शिक्षा की स्थिति अन्य समुदायों की तुलना में कमज़ोर रही है, लेकिन अब सरकार और विभिन्न संगठनों के प्रयासों से उनके लिए शैक्षिक सुविधाएँ बेहतर हो रही हैं। आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है।
8. आदिवासी महिलाएँ: चुनौतियाँ और संघर्ष
आदिवासी महिलाएँ समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, आर्थिक स्वतंत्रता की सीमाएँ और शैक्षिक अवसरों की कमी। कई क्षेत्रों में उन्हें लिंग आधारित हिंसा और सामाजिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है।
9. आदिवासियों का पर्यावरण से संबंध
आदिवासी समुदाय प्रकृति और पर्यावरण के साथ संतुलित जीवन जीते हैं। उनकी आजीविका वन, जल स्रोतों और कृषि पर निर्भर करती है। वे प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी उपयोग और संरक्षण करते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।
10. आदिवासी आंदोलन और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति
भारत में आदिवासियों के अधिकारों और भूमि की रक्षा के लिए कई आंदोलन हुए हैं, जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन और झारखंड आंदोलन। इन आंदोलनों ने आदिवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने और उनके अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हमने यह लेख पूरी सावधानी से लिखा है और इसका उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना नहीं है। अगर किसी के पास और जानकारी या सवाल हैं, तो कृपया यहाँ पूछें। हम उनका जवाब देने के लिए तैयार हैं और आपकी भाषा में जानकारी दे सकते हैं।
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