आदिवासी वीर शहीद योद्धाओं का इतिहास। आदिवासी वीर क्रांतिकारी।

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आदिवासी वीर शहीद योद्धाओं का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और अपने समुदाय की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई लड़ाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आदिवासी योद्धाओं ने अपने अधिकारों और अपनी भूमि की रक्षा के लिए वीरता का परिचय दिया और कई युद्धों में अपने प्राणों की आहुति दी। इन वीर शहीदों ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी बल्कि अपने समुदाय के शोषण और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनके वीरतापूर्ण कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। यहाँ कुछ प्रमुख आदिवासी वीर शहीद योद्धाओं का उल्लेख किया गया है। 


Tribal Revolutionaries

आदिवासी वीर शहीद योद्धाएं / क्रांतिकारी


बिरसा मुंडा 


बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित योद्धाओं में से एक हैं। उनका जन्म झारखंड के मुंडा समुदाय में हुआ था। उन्होंने आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार और अंग्रेजों द्वारा उनकी जमीन छीने जाने के खिलाफ विद्रोह किया। बिरसा मुंडा ने 'उलगुलान' (महान विद्रोह) का नेतृत्व किया और आदिवासी लोगों को संगठित किया।  उन्होंने भूमि अधिकारों के लिए तथा अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। बिरसा मुंडा को 1900 में गिरफ्तार कर लिया गया तथा जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन आदिवासी समाज में उन्हें आज भी एक महान नायक के रूप में सम्मान दिया जाता है।



टंट्या भील ( टंट्या मामा) 


टंट्या भील मध्य भारत के एक प्रमुख आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें "भीलों का रॉबिन हुड" भी कहा जाता है। वे अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला योद्धा के रूप में प्रसिद्ध थे और गरीबों और आदिवासियों के बीच उन्हें एक नायक के रूप में पूजा जाता था। टंट्या ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए अमीरों से लूटपाट करके गरीबों की मदद की, जिससे वे जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए। उन्हें 1889 में गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी गई, लेकिन उनकी वीरता और संघर्ष की कहानियाँ आज भी आदिवासी समुदायों में जीवित हैं।



रेंगू कोरकू


वे मध्य प्रदेश की कोरकू जनजाति के प्रमुख थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। रेंगू कोरकू ने अपने समुदाय को संगठित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया, जिसे कोरकू विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है। यह क्षेत्रीय स्तर पर अंग्रेजों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। रेंगू कोरकू ने अपने नेतृत्व और साहस के साथ अंग्रेजों के खिलाफ प्रभावी संघर्ष किया, जिससे कोरकू जनजाति में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता फैली।


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महाराणा पूंजा भील


महाराणा पूंजा भील राजस्थान के एक ऐतिहासिक योद्धा और प्रमुख भील नेता थे, जो महाराणा प्रताप के समकालीन थे। उन्होंने हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना का साथ दिया था। पूंजा भील ने अपनी भील सेना के साथ मुगल सेना का सामना किया और अपनी बहादुरी और समर्पण से महाराणा प्रताप का साथ दिया। भील समुदाय के लोग उस समय मुख्य रूप से पहाड़ों और जंगलों में रहते थे और महाराणा प्रताप के संघर्ष में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। महाराणा पूंजा भील की बहादुरी और बलिदान को राजस्थान के इतिहास में गर्व से याद किया जाता है



भीमा नायक


भीमा नायक मध्य प्रदेश के भील आदिवासी नेता थे, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने भील समुदाय को संगठित किया और अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया। भीमा नायक ने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई और कई बार अंग्रेजी सेना को हार का सामना करना पड़ा। अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी पर चढ़ा दिया गया, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।



तिलका माझी 


तिलका माझी एक संथाल आदिवासी योद्धा थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया था। उन्होंने ब्रिटिश शासन से आजादी पाने के लिए अपने समुदाय के लोगों को संगठित किया। तिलका माझी ने 1784 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध लड़ा। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी ऑगस्टस क्लीवलैंड पर अपने धनुष और बाण से हमला किया, जिससे उसकी मौत हो गई। उन्हें पकड़ लिया गया और 1785 में फांसी दे दी गई। तिलका माझी को भारत के पहले आदिवासी शहीदों में से एक माना जाता है।



सिद्धू-कान्हू 


सिद्धू और कान्हू दो भाई थे जो संथाल विद्रोह के मुख्य नेता थे। यह विद्रोह 1855 में संथाल समुदाय द्वारा ब्रिटिश शासन और साहूकारों के खिलाफ शुरू किया गया था। सिद्धू और कान्हू ने अपने लोगों को संगठित किया और अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध किया।  यह विद्रोह बहुत व्यापक हुआ और अंग्रेजों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अंततः उन्हें 1855 में गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी गई, लेकिन उनकी वीरता और बहादुरी को हमेशा याद किया जाता है।



जादोनांग 


जादोनांग मणिपुर के ज़ेलियांगरोंग नागा समुदाय से थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। उन्होंने नागा समाज को संगठित किया और अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध किया। जादोनांग का मानना ​​था कि अंग्रेजों की शासन प्रणाली नागा संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के खिलाफ थी। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और एक स्वतंत्र नागा राज्य की स्थापना करने का प्रयास किया। 1931 में उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दिया। उनकी शहादत के बाद रानी गाइदिन्ल्यू ने उनके संघर्ष को आगे बढ़ाया।



हल्दी बाई भील 


हल्दी बाई भील एक वीर महिला थीं जिनका नाम राजस्थान के इतिहास में विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है। वे भील समुदाय से थीं और उन्होंने महाराणा प्रताप के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप और उनकी सेना की सहायता की थी। हल्दी बाई भील के साहस और बलिदान को भील समाज और राजस्थानी इतिहास में गर्व के साथ याद किया जाता है। उनका योगदान भील समुदाय के उन अनगिनत नायकों और नायिकाओं का प्रतीक है, जिन्होंने मुगल आक्रमणों के खिलाफ लड़ाई में राजपूत राजाओं का साथ दिया।



रानी गाइदिन्ल्यू 


रानी गाइदिन्ल्यू नागा समुदाय की एक बहादुर योद्धा थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह 13 साल की उम्र में जादोनांग के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो गईं। जादोनांग की फांसी के बाद रानी गाइदिन्ल्यू ने विद्रोह का नेतृत्व किया और नागा समुदाय के स्वतंत्रता संग्राम को जारी रखा। उन्हें 1932 में अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और 14 साल की कैद में रखा। स्वतंत्रता के बाद, रानी गाइदिन्ल्यू को आदिवासी समाज में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।



गोंड राजा रघुनाथ शाह और शंकर शाह


रघुनाथ शाह और शंकर शाह मध्य प्रदेश के गोंड आदिवासी राजा थे। उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। रघुनाथ शाह और शंकर शाह ने अपने क्षेत्र में अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों का विरोध किया और गोंड समुदाय को संगठित किया। 1858 में उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया और तोप से उड़ा दिया। उनकी शहादत आज भी गोंड आदिवासी समाज में गर्व और प्रेरणा का प्रतीक है।


आदिवासी वीर शहीदों ने अपनी संस्कृति, अधिकारों और भूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी लड़ाई न केवल अंग्रेजों के खिलाफ थी, बल्कि उनके समुदाय के शोषण और अन्याय के खिलाफ भी थी। इन वीर आदिवासी शहीदों का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आदिवासी समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और भारतीय इतिहास में उनका एक सम्मानित स्थान है।  उनका बलिदान आज भी हमें प्रेरणा देता है और उनके संघर्ष की कहानी आदिवासी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित है।




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